astikjagat-आखिर क्यों कहा जाता है श्री राम को मर्यादापुरुषोत्तम ?

Getting your Trinity Audio player ready...

 

मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम 

आखिर क्यों कहा जाता है श्री राम को मर्यादापुरुषोत्तम ? इसके अनेक उत्तर वेदों और पुराने ने अपने अपने अनुसार दिया है | उनके जीवन मे हर एक कदम आदर्श, नैतिकता और कर्तव्य के उच्चतम मानकों का पालन किया गया है । भगवान राम ने अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए भी कभी अधर्म का मार्ग नहीं चुना | प्रभु श्री राम जी के बारे मे जितना कहा जाय उतना कम है |प्रभु श्री राम समेत धर्म की मूर्ति स्वरूप उनके समस्त भाइयों मे भी मर्यादा असंख्य गुना भारी हुई थी | प्रभु श्री राम चंद्र जी सदैव सत्य को अपने मस्तक पे धारण कर के अपने कर्तव्यों का वहन किया है | मै आपको भगवान श्री राम चंद्र जी के मर्यादित नियमों के बारे मे बताने जा रहा हु | मुझे उम्मीद है आप सभी लोग प्रभु राम के बनाए गए सिद्धांतों को अवश्य अपनाएंगे और अपने जीवन को सुखमय बनाएंगे

 

1. धर्म का पालन –

 

जैसा की मैने ऊपर बताया की  मर्यादा प्राप्त कने के लिए धर्म और नतिकता अति आवस्यक है | धर्म ,नतिकता यामनुष्य के किसी भी प्रकार के गुणों को सिखाने के लिए शास्त्र , वेद , पुराण , उपनिषद और ग्रंथ बनाए गए है | जिसकी मदद से व्यक्ति अपने जीवन मे सही मार्ग अर्थात ( धर्म के मार्ग ) पर चल सके | भगवान राम का जीवन धर्म का सर्वोत्तम उदाहरण है | धर्म का अर्थ पुराणो के अनुसार बताया गया है की सत्य , नैतिकता , और न्याय का पालन करना ही धर्म का पालन होता है यही नहीं अपितु  ( भगवान श्री कृष्ण ने गीत मे स्वयं कहा है की यदि छल का आसय धर्म है तो छल भी धर्म हैं  अर्थात यदि धर्म के पालन मे कोई बाधा उत्पन्नन हो तो धर्म के पालन के लिए छल करना भी भगवान श्री कृष्ण ने धर्म बताया है )

 

2. पिता के आदेश का पालन –

 

प्रभु राम ने अपने पिता के आदेश का पालन करने के लिए स्वयं के सुख स्वार्थ और समाज के संबंधों का त्याग कर दिया | अब आप यह स्वयं विचार करिए की कोइ आपको राज्य देने की बात करे और उसके कुछ समय पश्चात आपको वन आगमन की आज्ञा दे दे तो क्या आप उनके आदेशों को शिरोधार्य कर के आप वन निवाश के लिए जाएंगे ? आधे से ज्यादा लोगों का उत्तर होगा नहीं \   परंतु यही तो सीखने योग्य मुख्य बाते है की ऐसी मर्यादा की किसी भी प्रकार के वैभव का मोह नहीं | यही कारण है की श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में देखा जाता है |

3. सच्चाई का पालन –

 

समस्थ संसार मे कोई ऐसा प्राणी नहीं था जो भगवान राम को असत्य बोलने के लिए बाध्य कर सके | उनका दृढ़ निश्चय ही उनको मर्यादित बनाता है |  प्रभु राम द्वारा सत्य के पालन के अनेक उदाहरण है परन्तु उनमे मे सर्वश्रेष्ठ  उदाहरण मै आपको बताता हु | प्रभु राम ने समाज के भले के लिए माता सीता का त्याग कर दिया  जबकि यह निर्णय उन्हे ब्यक्तिगत दुख पहुचने वाला था | और प्रभु राम का मानना था की व्यक्तिगत स्वार्थ या भावना किसी भी स्थिति में सत्य से ऊपर नहीं हो सकती है। प्रभु राम का मानना था की हर मनुष्य को सत्य के मार्ग पे चलना चाहिए | और सत्य का पालन करते हुए थोड़े बहोत कष्ट का सामना भी करना चाहिए | यही कारण है कि उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में सम्मानित किया जाता है

  you may also read. निर्जला एकादशी व्रत कथा और माहात्म्य

4. धैर्य और साहस  – 

 

प्रभु राम ने अपने जीवन मे बहोत से कठिनाइयों का सामना किया परंतु उन्होंने कभी धैर्य और साहस का साथ नहीं छोड़ा रावण के साथ युद्ध , माता सीता का अपहरण ,  माता सीता को न्याय दिलाने की कठिन यात्रा – इन सभी चुनौतियों का सामना करते हुए श्री राम ने धैर्यपूर्वक अपना कर्तव्य निभाया। यह आप स्वयं विचार करिए की प्रभु राम को अपने पिता की मृत्यु  का संदेश सुनने के पश्चात अथाह दुख और पीड़ा से ग्राशित होने के बाद भी उन्होंने धैर्य और साहस का साथ नहीं त्याग | यही धैर्य और साहस भगवान राम को केवल रणभूमि मे ही नहीं अपितु जीवन के हर पहलुओ मे विजयी दिलाई | राम का जीवन यह दर्शाता है कि किसी भी कठिन परिस्थिति का सामना धैर्य और साहस के साथ किया जा सकता है।

 

5. वचनबद्धता –

 

राम जी के जीवन का आधार ही वचन का पालन करना था। उन्होंने हमेशा अपने वचन को निभाया, चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो। जब उन्होंने स्वयं  को वनवास के लिए सज्ज किया तो यह उनके द्वारा दिया गया वचन था कि वह समाज के मानदंडों का उल्लंघन नहीं करेंगे। उनके लिए वचन का पालन किसी भी व्यक्तिगत या पारिवारिक स्वार्थ से ऊपर था। यह दिखाता है कि भगवान राम अपने वचन के प्रति कितने प्रतिबद्ध थे, और यही उनको मर्यादित बनाने का एक अहम हिस्सा है |

 

6. सर्वोत्तम नेतृत्व-
 

प्रभु ने एक ऐसे नेतृत्व का उदाहरण पेश किया जो प्रजा के लिए और समस्त जन मनुष्य के लिए पूरी तरह से समर्पित है। वह न केवल युद्ध के महानायक थे, बल्कि अपने राज्य के कल्याण के लिए भी हमेशा तत्तपर रहते थे। अयोध्या में रामराज्य का मतलब था एक ऐसा शासन जहाँ हर नागरिक को न्याय, सुरक्षा और समृद्धि मिलती थी। प्रभु ने अपने नेतृत्व में निष्कलंक न्याय और दया को महत्व दिया, और हमेशा अपने राज्य के विकास के लिए कठोर निर्णय लिए।

 

 

।।हरि शरणं।।

 

astikjagatastikjagatastikjagatastikjagatastikjagatastikjagatastikjagatastikjagatastikjagatastikjagatastikjagatastikjagatastikjagatastikjagatastikjagat

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top