स्कंद षष्ठी 2025 व्रत कथा- पूजा विधि- सटीक समय

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स्कंद षष्ठी 2025
स्कंद षष्ठी 2025 ( भगवान कार्तिकेय )
स्कंद षष्ठी 2025 ( भगवान कार्तिकेय )

भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय को समर्पित दिन है जिसमे भगवान कार्तिकेय समेत माता पार्वती और भगवान शंकर की पूजा की जाती है , पुराणो और धार्मिक ग्रंथों के आनुशार बताया जाता है की भगवान कार्तिकेय ने स्कंद षष्ठी 2025 के दिन तारकासुर जैसे राक्षस का वध किया जिसने अपने अत्याचार और बाहुबल से सम्पूर्ण सृष्टि मे अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था |

स्कंद षष्ठी 2025  की शुभ तिथि और मुहूर्त
  • षष्ठी तिथि प्रारंभ: 4 मार्च 2025, दोपहर 3:16 बजे
  • षष्ठी तिथि समाप्त: 5 मार्च 2025, दोपहर 12:51 बजे
स्कंद षष्ठी 2025  के  दिन करें ये 6 शुभ कार्य
  • सुबह ब्रमहमुहूर्त मे उठकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें.
  • भगवान कार्तिकेय या भगवान मुर्गन को फूल, फल और प्रसाद अर्पित करें.
  • ‘स्कंद षष्ठी 2025 के दिन मुर्गन कवचम’ का पाठ करें, यह विशेष रूप से शुभ माना जाता है.
  • गरीबों  को दान-पुण्य करें, इससे मन शांत होता है तथा ऊर्जा प्राप्त होती है.
  • भगवान कार्तिकेय को प्रसन्न करने के लिए भजन-कीर्तन करें.
  • घर में दीप जलाएं और सुगंधित धूप-अगरबत्ती से पूजा करें.
स्कंद षष्ठी 2025  व्रत कथा

एक बार तारकासुर ने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की उसने कई हजार वर्ष एक पैर पे खड़े होकर ब्रह्मदेव की तपस्या की उसकी तपस्या से प्रसन्न ब्रह्मदेव तारकासुर को वरदान देने के लिए बाध्य हो गए । सृष्टि की कठोरता से भी अधिक कठोर तपस्या करने के बाद ब्रह्मदेव उसके सामने आए और बोले कि , हे तारकासुर ! मै तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हु वर मांगो । तारकासुर यह सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुआ । और उसने से अपनी बुद्धि से एक बार मागा की उसे जीवन भगवान शंकर के अंश से उत्पन्न पुत्र ही मार सके । माता सती को अपने पिता के यज्ञ कुंड में आत्मदाह करने के पश्चात भगवान शंकर माता के वियोग में योगनिद्रा में चले गए । तो तारकासुर ने सोचा कि अब तो भगवान शंकर की पत्नी का भी देहांत हो गया है । और भगवान शंकर योगनिद्रा में है और वे अकाम है । वे अब अपना विवाह नहीं करेंगे । और जब वे विवाह नहीं करेंगे तो उनके अंश से पुत्र उत्पन्न कैसे होगा । और जब पुत्र उत्पन्न नहीं होगा तो तारकासुर अमर हो जाएगा ।यही सोच के तारकासुर ने ब्रह्मदेव से वरदान मांगा था । ब्रह्मदेव ने तारकासुर की एवमस्तु बोल के ब्रह्मलोक चले गए । अब तारकासुर स्वयं को अमर समझने लगा और सृष्टि में विनाश लाने लगा । और देवगणों से उनका राज्य छीन लिया और अत्याचार करने लगा तत्पश्चात ब्रह्मदेव ने कामदेव को प्रेरित करके भगवान शंकर को योगनिद्रा से उठाया । जीसका परिणाम कामदेव भगवान शंकर की क्रोधाग्नि में जलकर भस्म हो गए । कुछ छन बाद ब्रह्मदेव और सभी देवगणों ने मिलकर अस्तुति की । फिर भोले भंडारी प्रसन्न हुए ।

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तत्पश्चात ब्रह्मदेव ने कहा प्रभु हिमगिरि की पुत्री कठोर तपस्या कर रही है । आप विवाह कर लीजिए और आपके अंश से उत्पन्न पुत्र के द्वारा तारकासुर नामक असुर का भी निवारण हो जाएगा । तत्पश्चात भगवान शंकर ने माता पार्वती से विवाह की । फिर कार्तिकेय जी का जन्म हुआ । जब कार्तिकेय जी बड़े हो गए तो वे देवताओं के सेनापति के रूप में जाकर स्कन्द षष्ठी के दिन तारकासुर का वध किया । इसी लिए भगवान कार्तिकेय के इस धर्म कार्य के उद्भव के उपलक्ष्य में स्कन्द षष्ठी मनाई जाती है | दक्षिण भारत में इन्हें मुरुगन नाम से अत्यंत श्रद्धा से पूजा जाता है। यह दिन शक्ति, साहस, नेतृत्व और विजय का प्रतीक है। भक् उपवास रखते हैं, विशेष रूप से षष्ठी व्रत करके भगवान स्कंद षष्ठी  2025 की कृपा प्राप्त करते हैं। इस प्रकार हमने आस्तिकजगत के माध्यम से आपको बताया की भगवान शंकर के वुवह की काथा ब्रह्मदेव के वरदान की कथा | अगर आपको यह जानकारी रोचक लगी हो तो कृपया नीचे दिए गए बॉक्स मे अपनी प्रतिक्रिया अवस्य भरे | धन्यवाद !

 

।।हरि शरणं।।

 Astijagat

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