इस वर्ष अक्षय तृतीया का व्रत 10 मई 2024 को रखा जाएगा। आइए जानते हैं इस महान पुण्यदायी व्रत के माहात्म्य को –

अक्षय तृतीया व्रत विधान –

भगवान श्रीकृष्ण जी ने युधिष्ठिर जी से कहा – पाण्डव ! वैशाखशुक्ल तृतीया(अक्षय तृतीया) में स्नान, दान, जप, हवन, स्वाध्याय और पितृतर्पण आदि जो कुछ भी किया जाये वह सब अक्षय होता है। सुनो! मैं बता रहा हूँ, यह व्रत कृतयुग(सतयुग) के आदि का है इसीलिए इसे युगादि कहा गया है, जिसके अनुष्ठान से समस्त पापों के शमन पूर्वक अखिलसौख्य की प्राप्ति होती है।

अब इसके विधान को बता रहा हूँ, सुनो! जलपूर्ण कलश जो समस्त रसों से पूर्ण हो, उसका दान ग्रीष्मऋतु में अत्यन्त प्रशस्त बताया गया है तथा यथाशक्ति छत्र, उपानह, गौ, भूमि और सुवर्ण एवं अन्य अभीष्ट वस्तु के दान भी उसे(व्रती को) निःसंकोच करना चाहिए।

इस तिथि में हवन अथवा दान करने से वह क्षीण नहीं होता है, इसीलिए मुनियों ने इसे अक्षय तृतीया कहा है क्योंकि देव पितृ के उद्देश्य से किये गये सभी कर्म इसमें अक्षय होते हैं ।

अक्षय तृतीया व्रत कथा –

शाकल नामक नगर में धर्म नामक एक वैश्य रहता था, जो प्रिय एवं सत्यवक्ता और देव ब्राह्मण-पूजक था उसने एक बार किसी कथावाचक विद्वान से यह सुनकर कि रोहिणी नक्षत्र समेत बुधवार के दिन तृतीया होने से वह और भी महान् फल प्रदान करती है, उस दिन जो कुछ थोड़ा बहुत दान दिया जाये, वह सब अक्षय होता है- गंगा में स्नान पितृ-तर्पण आदि करके पुनः घर आकर जलपूर्ण कलश, जवा, गेहूँ, चना का सत्तु, दही, चावल, गुड़ घी और अपनी शक्ति के अनुसार सुवर्ण की दक्षिणा ब्राह्मणों को अर्पित करना आरम्भ किया।
उस समय कुटुम्ब के भरण-पोषण में व्यस्त रहने वाली उस अपनी स्त्री के वरण करने पर भी वह निखिल वस्तुओं को नश्वर मानकर उसी भाँति दान करता रहा। इस भाँति धर्म, अर्थ और काम में आसक्त रहने वाले उस वैश्य का बहुत समय के उपरांत वासुदेव श्रीकृष्ण के स्मरण पूर्वक निधन हो गया। इसके पश्चात् वह कुशावती नगर का नरेश्वर(राजा) होकर उत्पन्न हुआ। पिछले जन्म के उस व्रत के प्रभाव से ही उसके अगाध सम्पत्ति प्राप्त हुई जिसके द्वारा उसने अनेक महान् यज्ञों को सुसम्पन्न किया और उनके प्रारम्भ में उसने गौ, भूमि, सुवर्ण आदि के दान रात-दिन किये तथा दीन-हीनों को यथोचित तृप्त करते हुए अनेक भाँति के समस्त सुखों के उपभोग किये, किन्तु उसका वह धन श्रद्धा समेत अक्षय तृतीया में दान करने के कारण वैसे ही अक्षय(कभी न समाप्त होने वाला) बना रहा।

इसलिए अक्षय धन-वैभव को चाहने वाले हर मनुष्य को प्रयत्न पूर्वक इस व्रत को अवश्य ही करना चाहिए।

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