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जगन्नाथ रथ यात्रा की पूरी कहानी
नमस्कार प्यारे साथियों हम आज आस्तिक जगत के माध्यम से जानेंगे जगन्नाथ रथ यात्रा का पूरा वृत्तनन्त |जैसा की आप सब को पता है मई के महीने मे रथ का विधिवत तरीके से निर्माण शुरू होता है | भगवान जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा के लिए अलग-अलग रथ बनाए जाते हैं | रथों का आकार प्रकार हर वर्ष की बहती ते राहत है उनमें किसी प्रकार

के बदलाव का सवाल ही नहीं रहता | जिनमें सबसे बड़ा रथ भगवान जगन्नाथ का होता है इसमें 16 पहिए होते हैं तथा इसकी ऊंचाई भी सबसे अधिक 135 मीटर होती है | इस रथ में कुल 832 लकड़ी के टुकड़ों का इस्तेमाल होता है | जगन्नाथ रथ यात्रा का आवरण लाल और पीला होता है | जगन्नाथ रथ यात्रा की तरह ही भगवान बलभद्र के रथ में 14 पहिए होते है तथा सुभद्रा के रथ में 12 पहिए होते हैं | बलभद्र के रथ की ऊंचाई 13.2 मीटर उसका आवरण लाल और नीला होता है | सुभद्रा के रथ की ऊंचाई 12.9 मीटर उसका आवरण लाल और काला होता है | निर्माण के बाद जेष्ठ यानी मई-जून के महीने में पूर्णिमा के दिन स्नान यात्रा के साथ रथ यात्रा के समारोह की विधिवत शुरुआत होती है | इस दिन तीनों मूर्तियों को मंदिर से निकालकर बाहर नहलाने के लिए लाया जाता है | लोगों के जय – जय मे जयकारों के बीच मूर्तियों को 108 घड़ों के पानी से स्नान कराया जाता है | नतीजतन यह होता है की उन्हे सर्दी-जुकाम हो जाता है | ऐसी मान्यता है , परिणाम स्वरूप इनका इलाज किया जाता है तकरीबन 15 दिन तक इन मूर्तियों की एक मरीज की भाति देखभाल की जाती है इसके बाद श्री जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए श्री जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा स्वस्थ हो जाते हैं | अगले दिन यह तीनों अपने-अपने रथ में सवार होकर जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं | जगन्नाथ रथ यात्रा की रवानगी से पहले कुछ और दिलचस्प रस्में होती हैं , जैसे कि धर्म-कर्म में गरीब और अमीर के भेदभाव को हाटाने के लिए पूरी का राजा सोने के झाड़ू से रास्ते को साफ करता है श्री जगन्नाथ शुरू में चलने में आनाकानी करते हैं इसलिए उनके मान मनहा के लिए जयकारों के साथ गीत गाए जाते हैं इन रस्म अदायगी हों के बाद रथ यात्रा का शुभारंभ होता है |
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उत्सव के माहौल में हजारों की संख्या में श्रद्धालु रथों को खींचते हैं | और सूर्यास्त तक यह तीनों रथ 3 किलोमीटर दूर स्थित बाग बगीचों वाले घर गुड़ी वा बाड़ी तक पहुंच जाते हैं | जगन्नाथ जी सहित तीनों मूर्तियों को मौसी के मंदिर में रखा जाता है 10 दिन पश्चात वहां से वापस आने की यात्रा में भी उसी प्रकार धूमधाम से जुलूस आता है | इन नौ दिनों के दर्शन को अड़प दर्शन कहते हैं | इनका अत्यधिक महात्म है इस यात्रा को उल्टा रथ कहते हैं | रथ यात्रा के दिन अनेक भक्त उपवास रखते हैं , अगले दिन श्री जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को मूल स्थान पर स्थापित करने से पहले उन्हें रथ पर ही सुनहरे वस्त्रों एवं स्वर्ण आभूषणों से सजाया जाता है | और इसी के साथ तीन सप्ताह तक चलने वाला यह धार्मिक उत्सव समाप्त हो जाता है | तत्पश्चात भगवान जगन्नाथ प्रसन्न होकर समस्त लोगों मे अपनी कृपा को बरसते है | ऐसी मान्यता है की जगन्नाथ रथ यात्रा जो कोई अपने जीवन मे एक बार भी देख लेता है या उसमे अपना सहयोग कर देता है | उसपे भगवान जगन्नाथ की कृपा हमेशा बनी रहती है | यही कारण है की श्रद्धालु लाखों की संख्या मे भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा मे भाग लेते है | मित्रों यह रहा जगन्नाथ रथ यात्रा का पूरा वृतनंत इसी प्रकार की विशेष जानकारियों के लिए देखते रहे धर्म ग्रंथों से परिपूर्ण आस्तिकजगत को और आपना प्यार बनाए रहे – जय जगन्नाथ
।।हरि शरणं।।