yekadashi-षटतिला एकादशी व्रत कथा और माहात्म्य

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yekadashi-षटतिला एकादशी
yekadashi-षटतिला एकादशी

yekadashi ( एकादशी ) धर्म की पावन गंगा में स्नान करने जैसा अनुभव देने वाली यह कथा आज हम सभी को एक दिव्य यात्रा पर ले जा रही है और यह यात्रा न केवल हमारे हृदय और आत्मा को शुद्ध करेगी बल्कि हमें ईश्वर की भक्ति और ज्ञान के मार्ग पर अग्रसर करेगी | कल्पना कीजिए आकाश स्वर्णिम आभा से भर गया है एक दिव्या रथ धर्मराज युधिष्ठिर को लेकर चल पड़ा है | इस रथ का मार्ग धर्म और सत्य की पवित्र भूमि धर्ममहल की ओर है | जहां परभगवान श्रीकृष्णा अपने दिव्य स्वरुप में विराजमान है , जो ब्रह्मांड की समस्त ऊर्जा और शांति के स्रोत हैं , यह यात्रा केवल भौतिक ही नहीं बल्कि आत्मा की भी गहन यात्रा है जो हमें कर्म , धर्म और भक्ति का सार समझता है | आइये हम इस दिव्य कथा की यात्रा पर चले जहा हर मोड पर परईश्वर की कृपा और हर पल धर्म का प्रकाश हमारे साथ रहेगा | इस पावन षटतिला yekadashi ( एकादशी )  पर हम आपकी महिमा का गुण गान करते हुए कथा का प्रारंभ करते हैं | 

 

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षटतिला एकादशी व्रत और पूजा करने की विधि

एक बार ऋषि ने पूछा हे मुनिवर मृत्यु लोक में रहने वाला प्रत्येक प्राणी पाप कर्मों में लिप्त रहता है , उन्हें नर्क  में यातनाएं दी जाती हैं , इससे बचने का क्या उपाय है कृपया व कथा मुझे बताइए | तब पुलसत्य जी ने कहा हे सौभाग्यशाली सुनो – माघ माष में स्नान के पश्चात इंद्रियों को वश में रखते हुए काम , क्रोध , अहंकार , लोभ और निंदा का परित्याग करके देवाधिदेव भगवान का स्मरण करना चाहिए | जल से पैर धोकर भूमि पर गिरा हुआ गोबर इकट्ठा करे उसमें तिल और रूई मिलकर 108 ठेले बना कर माघ मास में जैसे हीआद्रा मूल नक्षत्र आए कृष्ण पक्ष की yekadashi ( एकादशी ) का व्रत करो और शुद्ध भाव से स्नान करो पवित्र हो जाओ , तथा भगवान विष्णु का पूजन करो | पापों की क्षमा के लिए श्री कृष्ण का नाम जप करो रात्रि में जागरण करो चंदन ,  कपूर और भोग से पूजन करो बार-बार श्री कृष्ण का नाम जपते रहो नारियल और बीजों का फल चढ़ा और विधि पूर्वक पूजा करो |    

षटतिला एकादशी कथा 

ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः भभिसयोत्तर पुराण में भगवान श्री कृष्णा और महाराज युधिष्ठिर के संवाद में युधिष्ठिर कहते हैं | हे ! जगन्नाथ , हे श्री कृष्णा माघ के कृष्ण पक्ष में कौन सी yekadashi ( एकादशी ) आती है ? और इसे कैसे करना चाहिए इसका क्या फल है ? महाज्ञानी इस विषय पर समझाने की कृपा करें तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा हे! धर्मराज युधिष्ठिर माघ मास के कृष्ण पक्ष की yekadashi ( एकादशी ) षटतिला के नाम से प्रसिद्ध है महान ऋषि पुलस्त अपने सभी पापों को दूर करने वाली इस  yekadashi ( एकादशी ) की कथा दल ऋषि को सुनाई थी | अब आप भी उस कथा रूपी अमृत को सुनिए |

 | एक बार देव ऋषि नारद भगवान श्री कृष्ण के पास  षटतिला yekadashi ( एकादशी ) की महिमा सुनाने आए | तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा की एक ब्राम्हणी थी जो ब्रह्मचार का पालन करते हुए , भगवान की पूजा करती थी | अनेक प्रकार के तप करने से वह बहुत दुर्बल हो गई थी  | उसने दान तो बहुत  दिया परंतु उसने कभी ब्रम्हणो और देवताओं को भोजन नहीं दिया था | अनेक व्रत और तब करने से वह पवित्र हो गई थी | परंतु उसेने कभी भूखे लोगों को भोजन नहीं दिया था | हे ! मुनि  परीक्षा लेने के लिए मैं ब्राह्मण का वेश धारण करके उसके घर गया | जब मैने भिक्षा मांगी तो उसने पूछा हे !  ब्राह्मण सच-सच बताओ तुम कहां से आए हो मैं अज्ञानी बनने का नाटक किया और उसे कोई उत्तर नहीं दिया  | क्रोध में आकर उसने भिक्षा पात्र में फेंक दिया | कुछ समय तत्पश्चात अपनी तपस्या के प्रभाव से वह स्वर्ग धाम को लौट गयी | जब वह ब्राह्मणी मेरे धाम आई तो उसे केवल एक सुंदर महल मिला जो धन , स्वर्ण और आशीर्वाद से रहित था | इस सुंदर महल में कुछ भी न पाकर अस्वस्थ और क्रोधित होकर मेरे पास आई | वह बोली हे जनार्दन ! मैं समस्त व्रत तप करके भगवान विष्णु की आराधना की फिर भी मुझे धन-धान्य की प्राप्ति क्यों नहीं हुई | तब मैंने कहा हे साध्वी ! आप भौतिक संसार से यहां आई हैं अब आप अपने घर वापस जाएं देवताओं की पत्नियों आपसे मिलने आएंगे | उनसे षटतिला yekadashi ( एकादशी ) का महत्व पूछना तथा पूरी बात सुनने के बाद ही दरवाजा खोलना | यह बात सुनकर ब्राम्हणी महिला घर लौट आई , एक बार जब ब्राह्मणी महिला दरवाजा बंद करके अंदर बैठी थी | तभी देवी पत्नीया  वहां आई और कहने लगी हे सुंदरी ब्राह्मणी हम आपके दर्शन के लिए आए हैं | कृपया दरवाजा खोलिए तब ब्राह्मणी ने कहा यदि आप मुझे देखना चाहती है , तो कृपया षटतिला  yekadashi ( एकादशी ) की महिमा बताएं तभी मैं दर्शन दूंगी | तत्पश्चात देव पत्नियों ने ब्राम्हणी को षटतिला yekadashi ( एकादशी ) की अमृत रूपी कथा सुनाई |  षटतिला व्रत के फलस्वरूप ब्राम्हणी समस्थ सुखों से परिपूर्ण भगवान विष्णु के धाम बैकुंठ धाम पहोच गयी |भगवान श्री कृष्ण के इन वचनों से धर्मराज युधिष्ठिर के मन में गहरी उत्तेजना उत्पन्न हुई जैसे ही उन्होंने श्री कृष्ण के वचनों को समझा उनका हृदय परम शांति से भर गया | भगवान ने उनको बताया कि इस दिन व्रत करना और तिल का दान करना न केवल शारीरिक शुद्धि का साधन है , अपितु आत्मा मुक्ति का भी साधन है | उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है , और तिल का दान करता है , वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है | और इस लोक के साथ-साथ परलोक में भी सुख प्राप्त करता है | यह व्रत व्यक्ति के जीवन को धार्मिक बनता है और उसे परम सुख की प्राप्ति होती है | श्री कृष्ण ने इस कथन से युधिष्ठिर महाराज की हृदय पर गहरी छाप छोड़ी उन्हें एहसास होने लगा कि भगवान श्री कृष्ण द्वारा इस एकादशी व्रत के संबंध में दिया गया ज्ञान न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को समृद्ध बनाएगा , बल्कि पूरे पांडव और उनके राज्य के समृद्धि को भी संपूर्ण रूप से धर्म अनुयाई बनाएगा | उन्हें समझ में आ गया , कि अपने जीवन में इस व्रत का पालन करने से उन्हें न केवल भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी बल्कि देव दर्शन जैसे सुखों की उत्पत्ति भी होगी | अब महल के प्रांगण में शांतिपूर्वक वातावरण था | और उपस्थित सभी लोग भगवान से कृष्ण के वचनों को बड़े ध्यान से सुन रहे थे इस दिव्यांग को आत्मसात करते-करते अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए जो व्यक्ति दृढ़ संकल्पित थे | उन्हें षटतिला कहा गया  yekadashi ( एकादशी ) की इस कथा में सभी की हृदय में नई ऊर्जा और भक्ति का संचार किया जो उसके जीवन को एक नई लक्ष्य दे रही थी | 

 

।।हरि शरणं।।

 astikjagat 

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