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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत और महिमा ~
परमब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्ण ने साधु(सदाचारी) व्यक्तिओं की रक्षा के लिए, दुराचारी व्यक्तिओं(दुष्टों) के समूल विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए वाराहकल्प में इस धराधाम पर अवतार लिया था। भगवान श्रीकृष्ण पूर्णिमांत मास भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की मध्यरात्रि में चन्द्रमा के रोहिणी नक्षत्र में रहते अवतरित हुए थे। इसलिए जो कोई भी मनुष्य श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करता है वह महान पुण्य का भागी होता है। व्रती को एक करोड़ एकादशियों के व्रत के समान फल प्राप्त होता है।
इस वर्ष 2025 में यह व्रत 16 अगस्त और 17 अगस्त को रखा जा सकता है। 17 अगस्त को रोहिणी नक्षत्र होने के कारण विशेष फलदायी है।
भगवान श्रीकृष्ण के अवतार का कारण ~
जब जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है और पृथ्वी माता दुख से पीड़ित होकर प्रभु को पुकारती हैं तब तब चराचर जगत के पालन पोषण कर्ता श्री भगवान स्वयं ही धर्म के उत्थान और अधर्म के नाश के लिए प्रगट होते हैं।
एक बार ऐसे ही जब पृथ्वी पर अधर्मियों की वृद्धि हो गई तब पृथ्वी ने सृष्टि कर्ता ब्रह्मा जी से कहा कि –
हे जगत्पिता आपने मेरी सृष्टि की है; अतः आपसे अपने मन की बात कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है। मैं जिनके भारसे पीड़ित हूँ, उनका परिचय देती हूँ, सुनिये।
जो श्रीभगवान की भक्ति से हीन हैं और जो उनके भक्त की निन्दा करते हैं, उन महापातकी(दुराचारी) मनुष्यों का भार वहन(बोझ सहन) करने में मैं सर्वथा असमर्थ हूँ।
जो अपने धर्म(वर्णाश्रम) के आचरण से शून्य तथा नित्यकर्म(संध्या आदि) से रहित हैं, जिनकी वेदों में श्रद्धा नहीं(वेद वाक्यों को न मानने वाले) है; उनके भार से मैं पीड़ित हूँ।
जो पिता, माता, गुरु, स्त्री, पुत्र तथा पोष्य-वर्गका पालन-पोषण नहीं करते हैं अर्थात अपने दायित्व का पालन नहीं करते; उनका भार वहन करनेमें मैं असमर्थ हूँ।
पिताजी ! जो मिथ्यावादी(झूठ बोलने वाले) हैं, जिनमें दया और सत्य का अभाव है तथा जो गुरुजनों(पिता, माता, आचार्य आदि) और देवताओं की निन्दा करते हैं; उनके भारसे मुझे बड़ी पीड़ा होती है।
जो मित्रद्रोही(सच्चे मित्रों से मन में द्वेष रखने वाले), कृतघ्न(भलाई का एहसान न मानने वाले), झूठी गवाही देने वाले, विश्वासघाती(भरोसा तोड़ने वाले) तथा धरोहर हड़प लेनेवाले हैं; उनके भारसे भी मैं पीड़ित रहती हूँ। जो कल्याणमय सूक्तों, साम-मन्त्रों तथा एकमात्र मङ्गलकारी श्रीहरि भगवान के नामों का विक्रय करते हैं(पैसे लेकर भगवान की कथा करना आदि); उनके भारसे मुझे बड़ा कष्ट होता है।
जो जीवघाती, गुरुद्रोही, ग्रामपुरोहित, लोभी, चांडाल(मुर्दा जलानेवाले) तथा ब्राह्मण होकर शूद्रान्न(कष्टसाध्य श्रम के द्वारा धन का अर्जन करने वाले) का भोजन करनेवाले हैं; उनके भारसे मुझे बड़ा कष्ट होता है।
जो मूढ़ पूजा, यज्ञ, उपवास-व्रत और नियमको तोड़नेवाले(पूजा व्रत आदि को बीच में ही तोड़ देना) हैं; उनके भारसे भी मुझे बड़ी पीड़ा होती है।
जो पापी सदा गौ, ब्राह्मण, देवता, वैष्णव, श्रीहरि, हरिकथा और हरिभक्तिसे द्वेष करते हैं; उनके भारसे मैं पीड़ित रहती हूँ।
हे विधाता! शङ्खचूड़के भारसे जिस तरह मैं पीड़ित थी, उससे भी अधिक इन दैत्यों(ऊपर बताए हुए) के भारसे पीड़ित हूँ। प्रभो! यह सब कष्ट मैंने कह सुनाया। यही मुझ अनाथा का निवेदन है। यदि आपसे मैं सनाथ हूँ तो आप मेरे कष्टके निवारण का उपाय कीजिए।
इतना सुनकर भगवान ब्रह्मा जी पृथ्वी और देवताओं को लेकर भगवान शिव जी के पास गए और फिर अंत में सभी भगवान श्रीकृष्ण जी के पास पहुंचकर अपना दुःख कहा। यह सुनकर भगवान श्रीकृष्ण जी ने पृथ्वी को स्वयं अवतार लेने का आश्वासन दिया और वसुदेव-देवकी जी के अष्टम पुत्र के रूप में प्रगट होकर अधर्मियों का विनाश किया और पृथ्वी सहित अपने सभी भक्तों का दुःख दूर किया।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत कैसे करें ~
किसी भी व्रत को करने के लिए सबसे पहले इष्ट भगवान के प्रति पूरी श्रद्धा और विश्वास रखें। व्रत के दिन से पहले अर्थात सप्तमी तिथि को आहार और आचरण में शुद्धि रखें।
अष्टमी तिथि को ब्रह्म मुहूर्त(सूर्योदय से डेढ़ घण्टे पहले) में उठकर भगवान का स्मरण करें और कुछ समय नाम जप करें। उसके बाद नित्य कर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करें और भगवान श्रीकृष्ण जी की षोडशोपचार अथवा पंचोपचार पूजन करें। दिनभर निराहार रहें अथवा दूध या फल ग्रहण करें। मध्यरात्रि में भगवान के प्रकट होने के समय में भगवान के विग्रह का अभिषेक करें और विधिवत पूजन करें। अगले दिन सूर्योदय के पश्चात गौ ब्राह्मण आदि के लिए दान करके व्रत का पारण करें। इस प्रकार व्रत करने से सम्पूर्ण फल की प्राप्ति होती है।
हरि शरणम। जय श्रीकृष्ण