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विनायक चतुर्थी कथा
नमस्कार प्यारे साथियों हम आज आस्तिक जगत के माध्यम से जानेंगे विनायक चतुर्थी का पूरा वृत्तनन्त | शास्त्रों के अनुसार अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं | इस दिन भगवान श्री गणेश की पूजा दोपहर मध्याहन काल में की जाती है | श्री गणेश को विघनहर्ता भी कहा जाता है | वे सभी दुखों और कष्टों को हरने वाले देवता हैं , इसलिए भगवान गनेश को प्रसन करने

के लिए विनायक चतुर्थी का व्रत किया जाता है | दोस्तों विनायक चतुर्थी की व्रत कथा के अनुसार बहुत समय पहले की बात है , भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के निकट बैठे थे। वहां माता पार्वती ने भगवान भोले नाथ से समय व्यतीत करने के लिए चौपड खेलने को कहा। भगवान शंकर भी खेलने को तैयार हो गए। परन्तु इस खेल में हार जीत का फैसला कौन करेगा ये प्रश्न उठा। इसके जवाब में भोले नाथ ने नर्मदा नदी के निकट से कुछ तिनके एकत्रित किये और एक पुतला बनाया। उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर उससे कहा, बेटा हम चौपड खेलना चाहते हैं, परन्तु हमारी हार जीत का फैसला करने के लिए कोई नहीं है इसलिए तुम बताना कि हम में से कौन हारा और कौन जीता | इतना कहकर भोले नाथ और माता पार्वती ने चौपड का खेल शुरू कर दिया | यह खेल तीन बार खेला गया और संयोग बश तीनों बार माता पार्वती जीत गई। खेल समाप्त होने पर उन्होंने बालक से कहा कि हार जीत का फैसला करो। तब बालक ने महादेव को विजइ बता दिया। ये सुनकर माता पारवती क्रोधित हो गई और क्रोध में आकर उन्होंने बालक को श्राप दे दिया और बोली तुम्हारा एक पैर तूट जाएगा और तुम कीचर में पड जाओगे | इतना सुनने के बाद बालक मत से छमा मागने लगा | और बोला माता मै अज्ञानता वश ऐसा किया है | किसी द्वेश से नहीं , तब माता पार्वती ने उससे कहा ठीक है आब तुम मेरे प्रिय पुत्र विघनहर्ता गणेश की आराधना करो , और जब नागकन्या आएंगी तो उनसे गणेश चतुर्थी व्रत कथा की विधि पूछना |
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तत्पश्चात माता प्रभु के साथ कैलाश पर चली गई | एक वर्ष बाद उस थान पर नाथ कन्याएं आईं और उनसे श्री गनेश की व्रत की विधी पता कर उस बालक को कृतार्थ किया तत्पश्चात बालक ने 21 दिनों तक लगातार गणेश जी का व्रत किया | जिस से प्रसन्न होकर उन्होंने बालक को मन वांचित वर मांगने को कहा तब बालक ने कहा | हे विनायक ! मुझे इतनी शक्ती दे दीजिये कि मैं अपने पैरों से चल कर अपने माता पिता के पास पहुँच जाउ । बालक को यह वचन दे कर विग्नहरता श्री गनेश अंतरध्यान हो गए। इसके बाद बालक कैलाश पर्वत पर पहुचा और वहाँ पहुचने की सारी कथा उसने महादेव को सुना दी। उस समय पार्वती जी महादेव से विमुक हो रखी थी | माता के रुष्ट होने पर भगवार शिव ने भी बालक के बताए अनुसार श्री गनेश का 21 दिनों तक व्रत किया जिसके प्रभाव से माता की नाराजगी दूर हो गई | और वो स्वयं महादेव से मिलने कैलाश पर पहुची। वहाँ पहुचकर उन्होंने शिव जी से पूछा आपने ऐसा कौन सा उपाय किया जिसके फल स्वरूप मैं आपके पास आने के लिए विवश हो गयी | भगवान शंकर ने विनायक चतुर्थी का इतिहास उन्हें बताया। यह सुन माता पार्वती ने अपने पुत्र कार्तिके से मिलने की इच्छा जताई। और इसी इच्छा से उन्होंने भी 21 दिनों तक विग्नहर्ता श्री गणेश का व्रत किया और भगवान कार्तिके जी स्वयं पार्वती जी से मिलने आये। कार्तिके जी ने यह व्रत विश्वामित्र जी को बताया। विश्वामित्र जी ने 21 दिनों तक व्रत कर गनेश जी से जन्मों से मुक्त होकर ब्रह्मऋषि होने का वर मांगा और गनेश जी ने उनकी यह मनोकामना पूर्ण करी | इस प्रकार विनायक चतुर्थी का व्रत मनोकामना पूर्थी व्रत कहा जाता है | यही कारण है विनायक चतुर्थी का व्रत किया जाता है |
।।हरि शरणं।।