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भीमसेन को निगल लिया देवराज इन्द्र ने

एक दिन भीमसेन किसी सेवा कार्य के लिए वन में अकेले विचरण कर रहे थे | कांति मान महाबली भीमसेन किसी को कुछ समझते नहीं थे उन्होंने जंगल मे दहाड़ मारी | वह दहाड़ गूंज पड़ी , तो तत्काल देखा एक गुफा से मुंह फैलाए हुए अजगर आया |और उसका आकर्षण इतने जोर का था जैसे कुछ चुंबक खिच लेता है ऐसे भीम खींच गए उस अजगर के मुख मे चले गए और वह अपने शरीर से भीम को फसा लिया |अजगर शिकार को अपने बंधन में इतना जकड़ लेता है कि वह चूर चूर हो जाए फिर उसे लील जाता है | पर्वत के समान विशाल महाबली भीमसेन ने देखा कि हल्दी के जैसा उस अजगर का रंग था | अजगर जकड़ने लगा भीमसेन ने अपनी बहुत ताकत लगाई पर कुछ काम नहीं कर सका | कुछ समय पश्चात भीमसेन का शरीर शिथिल होने लगा | अचेत होने लगे कोई बल काम नहीं कर रहा | दश हजार हाथियों का बल जिनकी भुजाओं में है | वे आज अजगर से नहीं छूट पा रहे है तेजस्वी भीमसेन ने अपने को जब देखा कि , अब तो अजगर लील ही जाएगा अपने नागपश्व में बांध लिया घोर प्रयत्न किया भीमसेन ने परंतु किसी भी प्रकार से उस सर्प के उस पश्व से बाहर नहीं निकल सके | भीमसेन ने सर्प से कहा कि मैं निश्चित कह सकता हूं कि आप कोई सिद्ध है या वरदानी है , नहीं तो कोई ऐसा नहीं है कि जो मुझे बांध सके | मैं धर्मराज युधिष्ठिर का छोटा भाई महाराज पांडु का पुत्र भीमसेन हूं | दसियों हजार हाथियों का बल हमारी भुजाओं में है | जैसा आपने जकड़ रखा ऐसा कोई त्रिभुवन में मुझे बांध नहीं सकता सैकड़ों अजगर मेरे सामने कुछ नहीं है | सैकड़ों केसरी सिंह व्याघ महेश गजराज एक साथ मिलकर आ जाए सबको मैं भुजा की टक्कर से रौद दू | कोई भी त्रिभुवन का राक्षस-पिशाच अपितु महाबली नाग राज राज मे भी इतना सामर्थ्य नहीं जो मुझे बांध सके | लेकिन यह क्या कारण है आपको कोई वरदान है ?या आप है कौन जो मैं आपके पश्व से अपने को नहीं मुक्त कर पा रहा हु | अजगर ने कहा मैं बहुत समय से भूखा हूं , सौभाग्य से देवताओं ने मेरे लिए बहुत बढ़िया भोजन भेजा है | कोई भी देहधारी हो सबको अपने प्राण का प्रिय आहार होता है , आहार जब मिल गया तो आनंद मिलेगा ही हम तुम्हें क्यों छोड़ दे ? पर तुम जैसा पूछ रहे हो तो मै बात देता हु ध्यानपूर्वक सुनो | मैं कोई साधारण अजगर नहीं हूं मैं मनीषी ब्रह्म ऋषियों का अपमान करने के कारण अजगर बना हुआ हूं | मैं देवराज इंद्र के पद से सीधे अजगर योनि में आया हूं | मैं तुम्हारा पूर्वज नहुष हूं | जब अपने वंश की कीर्ति सुनी होगी तो तुमने सुना होगा मेरा नाम मैं नहुष हू तुम्हारे पूर्वजों का पूर्वज | मैंने ब्रह्म ऋषियों का अनादर कर दिया इससे मुझे श्राप प्राप्त हुआ और श्राप के दुर्भाग्य का स्वरूप तुम देख रहे हो मैं साप बना हु | यद्यपि तुम मेरे वंश के हो , मेरे प्रपौत्र हो मारना नहीं चाहिए | पर मैं इतना भूखा हूं कि अब मैं तुम्हें छोड़ नहीं सकता | मैं आहार बनाऊंगा क्योंकि मुझे अपने प्राण पोषण करने हैं | मुझे वरदान है कि दिन के छठे प्रहर में कोई मेरे सामने आ जाएगा तो वह मेरे सामने से निकल नहीं पाएगा और मेरी जकड़ में जो आ गया वह मेरी इच्छा के बिना छूट नहीं पाएगा | ऋषियों ने दया करके मुझे वरदान दिया था | भीमसेन तुम वरदान के कारण ही निष्फल हो गए हो | मैं इंद्र के सिंहासन पर विराजमान हुआ , पर मुझे अभिमान हो गया मैं ऋषियों का अपमान करने के कारण से ऐसे संकट में पड़ गया | इंद्र के सिंहासन का भोगी हो कर भी मैं कितनी नीच योनि में गिरा हूं | यह अगस्त ऋषि का शाप मुझे भ्रष्ट कर दिया | पर जब मैं गिर रहा था तो रो रो करके महर्षि से कह रहा था कि शप से मुक्त होने का भी उपाय बता दीजिए , तो उन्होंने कहा था जब पृथ्वी में तुम अजगर के रूप में होगे तो तुम्हारी स्मरण शक्ति नष्ट नहीं होगी | और जब तुम्हारे प्रश्नों का कोई उत्तर दे देगा तब तुम मुक्त हो जाओगे – तो मेरे प्रश्नों का उत्तर जब मिल जाएगा तब मैं सर्प योन से मुक्त होऊंगा | तो तुम बच सकते हो अन्यथा नहीं और उन्होंने कहा था तुम जिसे पकड़ लोगे तो चाहे स्वयं मूर्तिमान बल ही क्यों ना हो उसका धैर्य खो जाएगा | और वह तुम से छूट नहीं पाएगा तुम्हारा आहार बन जाएगा इस प्रकार उनके कहने के कारण तुम्हारा बल काम नहीं कर रहा | वस्तुत तुम जैसा कह रहे हो वैसे ही बलि हो हजारों अजगर – हजारों सिंह हजारों हाथी आ जाए तो भी भीम का कुछ नहीं बिगाड़ सकते | तुम मेरी पकड़ में आ गए हो अब तुम छूटने वाले नहीं यद्यपि मैं जानता हूं तुम हमारे वंशज हो नहीं खाना चाहिए | पर मैं बहुत भूखा हूं मैं अपने शरीर के रक्षा के लिए तुम्हें खाऊंगा | देव ने मुझे अकारण तुमको भोजन रूप में दिया है | भीम ने कहा मुझे मृत्यु का शोक नहीं पर दुख यह है कि अगर मैं मरा तो मेरे भाई इतने निराश हो जाएंगे कि फिर वह पुनः राजगद्दी में बैठने को सोचेंगे भी नहीं और अगर धर्मराज युधिष्ठिर जैसा राजा ना हुआ तो प्रजा जीवित नहीं रहेगी | मेरी मृत्यु सुनकर के मेरे भाई सब उद्योग रहित हो जाएंगे अर्थात जो आज हम ठान रहे हैं हस्तिनापुर का राज्य धर्मराज युधिष्ठिर प्राप्त करें वह नहीं हो पाएगा | भुजंगम मेरे शरीर छोड़ते ही मेरी माता प्राण छोड़ देगी |क्योंकि वो केवल जी ही इसीलिए रही कि मेरे पुत्र इतना कष्ट पा रहे पर अपने बाहुबल से एक दिन सिंहासन पर बैठेंगे | भीमसेन ऐसा कह ही रहे थे कि सर्प ने उनकी केवल दो भुजाएं छोड़ी और जकड़ और मजबूत कर दी | भीम को बहुत पीड़ा होने लगी इतने में युधिष्ठिर जी की बाई आख फड़की और उनको लगा कोई अनिष्ट हो गया | युधिष्ठिर जी के महान हृदय में घबराहट पैदा हुई | द्रोपदी से पूछा भीम कहां है तो उन्होंने कहा वो तो वन विहार के लिए निकल गए थे | भीम के पैर जहां जहां पढ़ते थे वहां की भूम धश जाती थी | उनके चरण चिन्हों के आधार पर ब्राह्मणों को आगे करके युधिष्ठिर जी चले पद चिन्ह देखते देखते आगे बढ़े पद चिन्हों के सहारे जाकर उस कंदरा पर पहुंचे जहां भीमसेन को अजगर जकड़े हुए था | चेष्टा शून्य भीम हो रहे थे केवल स्वास चल रही थी | अपने छोटे भाई को इस तरह जकड़ा हुआ देखकर यष्टि ने पूछा | भीम तुम ऐसी विपत्ति में कैसे फंस गए ? यह पर्वता का सर्प कौन है और कौन ऐसा बलवान है जिसकी पकड़ से तुम छूट नहीं सकते ? भीम बोले ये सर्प के रूप में महान शक्तिशाली देवराज इंद्र के पद पर अभिषिक्त हो चुके महाराज नहुष हैं जो साप के कारण अजगर बन चुके है और यह मुझे आहार बनाने के लिए पकड़ लिया है | युधिष्ठिर जी ने हाथ जोड़ा और कहा महाराज आप जानते हैं हमारे आप पूर्वज हैं आप मेरे भाई को छोड़ दे मैं आपकी भूख मिटाने के लिए जो कहेंगे वह आपको दूंगा |
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सर्प बोला:- राजन यह आहार मुझे देवो ने दिया है | तुम्हें यहां नहीं ठहरना चाहिए जाओ वरना तुम भी मेरे आहार बन जाओगे | इसलिए मैं तुमसे कहता हूं भाग जाओ तुम्हारा यह भाई तो नहीं बचेगा क्योंकि मेरा नियम है की मेरी अधिकृत भूमि के अंतर्गत जो आ जाएगा वह मेरा भोजन बन जाएगा | मैं बहुत काल से भोजन नहीं प्राप्त किया हूं तुम्हारे भाई को छोड नहीं सकता | युधिष्ठिर ने कहा:- आप कोई देवता दैत्य या सर्प नहीं हो जब पता चल गया है कि आप हमारे पूर्वज हो तो आपको कृपा करनी चाहिए | आप स्वयं स्मरण कीजिए आपने बड़े बड़े यज्ञ किए हैं स्वाध्याय किया है तपस्या की है सत्कर्म किए हैं तत्पश्चात देवराज इद्र के पद पर बैठे हैं | आपको ऐसी गति कैसे प्राप्त हो गई ? तो उन्होंने कहा कि मैंने जो ब्रह्म ऋषियों से सेवा ली – पालकी उठवाई उसका मुझे परिणाम मिला है कि मैं अजगर बना हूं मैं ऐसी अवस्था में पहुंच गया हूं युधिष्ठिर ने कहा कि तुम्हारी इच्छा क्या है ? नग ने कहा:- मैं इस योन से तभी छूट सकता हूं यदि तुम मेरे प्रश्नों का उत्तर दे दो मैं भीमसेन को छोड़ दूंगा | क्योंकि मैं सर्प योन से मुक्त हो जाऊंगा युधिष्ठिर जी ने कहा:- आप इच्छा अनुसार प्रश्न कर सकते है आपकी बात का धर्म युक्त उत्तर प्रकाशित करूंगा | सर्प ने कहा कि मैं ब्रह्म ऋषियों का जीवन जानना चाहता हूं | 1. तुम जानते हो उस तत्व को- ब्रह्म ऋषि किसे कहते हैं ? 2.जानने योग्य तत्व क्या है जिसे जान लेने के बाद कुछ जानना बाकी नहीं रहता ? तुम महान बुद्धिमान साक्षात धर्म हो मेरा उत्तर दो | युधिष्ठिर ने कहा:- नागराज जिसमें सत्य विराजमान हो , वाणी में और जीवन में भी और दूसरों को सुख देने की भावना हो और हर अपराध को क्षमा करने का स्वभाव हो बहुत ही सुशील और सरल स्वभाव हो क्रूरता कभी छू ना गई हो और तपस्या जिसके स्वभाव में बैठी हो जिसमें ऐसे सद्गुण विराजमान हो उसे ब्रह्म ऋषि कहा जाता है |“सत्यम दानं क्षमा शीलमानृशंस्य तपो घृणा । दृश्यंते यत्र नागेन्द्र स ब्राह्मण इति स्मृत:।।” और आपने दूसरा प्रश्न पूछा ! जानने योग्य तत्व क्या है – तो जानने योग्य तत्व परब्रह्म है | जो परब्रह्म को जान लेता है वह दुख और सुख दोनों से परे पहुंच जाता है | जो उस तत्व को जान लेता उसके हृदय में कभी शोक नहीं होता है | नहुष जी बोले:- जानने योग्य तत्व दुख और सुख से परे बताया तुमने पर मैं तो सबको दुख और सुख से युक्त देखता हूं | हां सत्य है जो दिखाई देता है वह तत्व नहीं है | जो दिखाई देता है सुख दुख वो भोगता देहा अभिमानी जीव है , वो तत्व नहीं है तत्व तो अनुभव में आने वाली चीज है | वो देखने वाली वस्तु थोड़ी है , वह लक्षणों के आभाव में जो तुम बाहरी देख रहे हो शरीर क्रिया और देहा भिमानी जीव जो दुख सुख का भोगता कर रहा है वह अपने स्वरूप को नहीं जान रहा है | तत्व दुख सुख से परे शोक रहित स्थिति है | जो दुख सुख से परे वेद्य तत्व है दुख सुख से शून्य है | उस पद को जानने के लिए देह भाव का त्याग करना होता है | वह हर समय देही भाव में तो रहते हैं देखो ना उठना बैठना खाना पीना चलना बोलना लेकिन जो तत्व बोध जिसे हो जाता है सब करते हुए भी व कुछ नहीं करता | नागराज मेरा तो यही विचार है फिर आप जैसा कहे ~जिससे संस्कार सदाचार और देह भाव का नाश प्राप्त होता है वह ब्रह्म ऋषि का संग कहलाता है | संस्कार भागवती सदाचार इंद्रियों का संयम और देह भाव का नाश अर्थात आत्म स्वरूप में स्थिति ये किसके संग से किस साधन से बोले ब्रह्म ऋषियों के संग से भगवत प्रेमी महात्माओं के संग से | फिर सर्प ने कहा:- मैं तुम्हारी बात अच्छी तरह से समझ रहा हूं तुम ठीक से धर्म को जानने वाले हो तुम्हारे भीमसेन को अभी तो मैं नहीं खा रहा पर जानने योग्य बात का और विस्तार से वर्णन करो युधिष्ठिर जी ने कहा:- वेद वेदांग के पारगाव जिस आचरण को प्रमाणित करते हैं वही आचरण करना चाहिए | मनमानी नहीं करनी चाहिए , हम वेदों को नहीं जानते शास्त्रों में क्या लिखा है इतना पढ़े नहीं सब | तो जो संत गुरुदेव बोल रहे हैं वह सार है उसको पकड़ो उसके अनुसार चलो वेद रूपी जंगल में तुम भटक जाओगे | नहीं जान पाओगे रास्ता क्या है | ~ इस विषय में सर्प ने कहा:- मैं तुमसे प्रश्न करता हूं कि दान देने से सत्य प्रिय वचन बोलने से और अहिंसा करने से उत्तम गति पा सकता है ? आपका क्या विचार है ? युधिष्ठिर जी ने कहा:- दान से भी बड़ा पलड़ा भारी होता है सत्य का और अहिंसा और हितकर भाषण सत्य से भी भारी होता है अगर सत्य बोल रहे हो दूसरे का हृदय चूर चूर कर दिया दूसरे का नाश का अवसर आ गया दूसरा बंधन में पड़ गया | उसको मैं श्रेष्ठ समझता हूं महाराज दान सत्य तत्व अहिंसा और प्रिय भाषण इनकी गुरुता और लघुता कार्य की महता के अनुसार देखी जाती है | तुम तो बड़े सर्वज्ञ हो जो प्रश्न करता हो उसका उत्तर दे देते हो तुमने बहुत बड़े अद्भुत कर्म किए हैं तभी तुम्हें ऐसा ज्ञान प्राप्त हुआ है अद्भुत कर्म का तात्पर्य तुमने ऋषियों की जरूर सेवा की होगी तो युधिष्ठिर फिर एक प्रश्न का और उत्तर दीजिए | यह जो बड़े बड़े धन संपत्ति वाले जन है यह अपने को बुद्धिमान समझते हैं शूरवीर समझते हैं | पर इनको कौन ऐसा है जो मोह में डाल देता है दुर्गति हो जाती है | जैसे मेरी हुई | मैं देवराज इंद्र के पद पर था उस पद में जाते ही मैं मदोमत्त हो गया और मेरे से वो अपराध बना जो बिल्कुल नहीं होना चाहिए | महान तपस्वी ऋषियों से पालकी जुताई | परंतु आज मेरा हृदय जल रहा है कि मैंने वो क्या अपराध किया जिन ऋषियों की चरण धूल कर माथे पर रखना चाहिए | उनके कांधे पर पालकी ढूलवाई और मेरी ये दुर्गति हो गई ये बड़ा कष्टदायक जीवन मेरा सर्प योनि में है | देवराजेंद्र पद मुझे प्राप्त था ब्रह्म ऋषि देवता गंधर्व यक्ष राक्षस कोई भी मेरे सामने आ जाए उसकी आधी शक्ति मेरे में आ जाती थी | यह मुझे देवताओं ने वरदान दिया था | मैं जिस प्राणी की ओर आंख उठाकर देख लू तत्काल उसका तेज नष्ट हो जाता था | मैं ऐसा तेजवान पर मैंने ब्रह्म ऋषियों का अपमान करके अपना सर्वनाश कर लिया | मेरी इतनी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी कि जब पालकी पर ऋषि जन चल रहे थे | तो मैंने आगे चलने वाले महर्षि अगस्त को लात मारी कि सर्प-सर्प ( मतलब शीघ्र चल शीघ्र चल ) तो उन्होंने कहा जा तू देवराज इद्र के पद में बैठा हुआ इतना बड़ा अपराध कर दिया सर्प सर्प बोलता जा सर्प योनि को प्राप्त हो जब मैं नीचे गिरा तो देखा मैं सर्प योनि को प्राप्त हो गया | प्रमाद यह विवेक शून्यता ये धन और पद का अपराध मेरा सर्वनाश कर दिया | जब मैं गिर रहा था तो रोने लगा और ऋषियों से कहा कि आप तो बहुत करुणामय हैं | कम से कम मेरे साप को आप एक सीमा में बांध दीजिए | कब तक मैं भोग इस दुख को तो उन्होंने कहा कि जब तुम्हारे कोई उत्तर दे देगा तुम्हें स्मृति प्राप्त रहेगी मेरी कृपा से और जब तुम्हारे धर्म संजक प्रश्नों का उत्तर दे दे तो जान लेना साक्षात धर्मराज तुम्हारे सामने खड़े हैं बस तुम उनके दर्शन से ही इस शाप से मुक्त हो जाओगे | तो मुझे आज सौभाग्य प्राप्त हो गया है | आपने मेरे प्रश्नों का उत्तर दिया मैं समझा साक्षात धर्मराज तुम हो आज मेरे अजगर के शरीर त्यागने का अवसर आ गया है | अब देखो मैं तुम्हारे सामने भीम को छोड़ता हूं और अपने शरीर को छोड़ता हूं जेही ऐसा कहा अजगर शरीर छूटा दिव्य तेजों में क्योंकि वो महान पुण्य आत्मा ही है | अपने स्वरूप को प्राप्त हुए | धौम्याचार्य ने मंत्रों से भीम को अभिषिक्त किया और उनको साथ लेकर आश्रम पर आए तब धर्मराज युधिष्ठिर ने सबके सामने कहा कि भाई देखो इतने बड़े प्रतापी पुण्यात्मा देवराज इंद्र के पद पर बैठने वाले नहुष जी को अपार दुख भोगना पड़ा | इससे यह शिक्षा लो की कभी भूल से भी किसी ऋषि का पराध ना बन जाए |
।।हरि शरणं।।