आइए जानते हैं वैशाख महीने का माहात्म्य –

महाराज अम्बरीष ने देवर्षि नारद जी से पूछा– मुने ! माधव मास(वैशाख माह) के व्रत का क्या विधान है? इसमें किस तपस्या का अनुष्ठान करना पड़ता है? क्या दान होता है? कैसे स्नान किया जाता है और किस प्रकार भगवान केशव की पूजा की जाती है? हे ब्रह्मर्षे! आप श्रीहरि के प्रिय भक्त तथा सर्वज्ञ हैं, अत: आप कृपा करके मुझे ये सब बातें बताइए।

नारदजी ने कहा– साधुश्रेष्ठ! सुनो, वैशाख मास में जब सूर्य मेष राशि पर चले जाएँ तो किसी बड़ी नदी में, नदी रूप तीर्थ में, सरोवर में, झरने में, देवकुण्ड में, स्वत: प्राप्त हुए किसी भी जलाशय में, बावड़ी में अथवा कुएँ आदि पर जाकर नियमपूर्वक भगवान श्रीविष्णु जी का स्मरण करते हुए स्नान करना चाहिए।

स्नान के पहले निम्नलिखित श्लोक का उच्चारण करना चाहिए –
यथा ते माधवो मासो वल्लभो मधुसूदन।
प्रात:स्नानेन मे तस्मिन् फलद: पापहा भव।।

भावार्थ– “हे भगवान मधुसूदन ! माधव मास(वैशाख माह) आपको विशेष प्रिय है, इसलिए इसमें प्रात:स्नान करने से आप शास्त्रोक्त फल देने वाले हों और मेरे पापों का नाश कर दें”।

येऽबान्धवा बान्धवा ये येऽन्यजन्मनि बान्धवा:।
ये तृप्तिमखिला यान्तु येऽप्यस्मत्तोयकाड्क्षिण:।।

भावार्थ– “जो लोग मेरे बान्धव न हों, जो मेरे बान्धव हों तथा जो दूसरे किसी जन्म में मेरे बान्धव रहे हों, वे सब मेरे दिये हुए जल से तृप्त हों। उनके अलावा और भी जो कोई प्राणी मुझसे जल की अभिलाषा रखते हों, वे भी तृप्ति लाभ करें।

ऐसा कहकर उनकी तृप्ति के उद्देश्य से जल गिराना चाहिए। तत्पश्चात सूर्यदेव के नामों का उच्चारण करते हुए अक्षत, फूल, लाल चन्दन और जल के द्वारा उन्हें यत्नपूर्वक अर्घ्य दें।

अर्घ्यदान मन्त्र इस प्रकार है –

नमस्ते विश्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मरूपिणे।
सहस्त्ररश्मये नित्यं नमस्ते सर्वतेजसे।।
नमस्ते रुद्रवपुषे नमस्ते भक्तवत्सल।
पद्मनाभ नमस्तेऽस्तु कुण्डलांगदभूषित।।
नमस्ते सर्वलोकानां सुप्तानामुपबोधन।
सुकृतं दुष्कृतं चैव सर्वं पश्यसि सर्वदा।।
सत्यदेव नमस्तेऽस्तु प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तेऽस्तु प्रभाकर नमोऽस्तु ते।।

देवर्षि नारद जी राजा अम्बरीष से कहते हैं कि -राजन् ! जो वैशाख मास में सूर्योदय से पहले भगवत्-चिंतन करते हुए पुण्यस्नान करता है, उससे भगवान विष्णु निरंतर प्रीति करते हैं। पाप तभी तक गरजते हैं जब तक जीव यह पुण्यस्नान नहीं करता।

  • वैशाख के महीने में जो श्रीमधुसूदन का पूजन करता है, उसके द्वारा पूरे एक वर्ष तक श्रीमाधव की पूजा सम्पन्न हो जाती है

 

  • जो वैशाख मास में तुलसीदल से भगवान विष्णु की पूजा करता है, वह विष्णु की सायुज्य मुक्ति को पाता है।

 

  • जैसे भगवान माधव ध्यान करने पर सारे पाप नष्ट कर देते हैं, उसी प्रकार नियमपूर्वक किया हुआ माधवमास का स्नान भी समस्त पापों को दूर कर देता है।

 

  • जो समूचे वैशाख भर प्रतिदिन सवेरे स्नान करता, जितेन्द्रियभाव से रहता, भगवान के नाम जपता और हविष्य भोजन करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।

 

  • जो वैशाख मास में आलस्य त्यागकर एकभुक्त व्रत, नक्तव्रत अथवा अयाचितव्रत करता है, वह अपनी संपूर्ण अभीष्ट वस्तुओं को प्राप्त कर लेता है।

 

  • वैशाख मास में प्रतिदिन दो बार गाँव से बाहर नदी के जल में स्नान करना, हविष्य खाकर रहना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, पृथ्वी पर सोना, नियमपूर्वक रहना, व्रत, दान, जप, होम और भगवान मधुसूदन की पूजा करना – ये सभी नियम हजारों जन्मों के भयंकर पाप को भी हर लेते हैं।

 

  • प्रतिदिन तीर्थ स्नान, तिलों द्वारा पितरों का तर्पण, धर्मघट आदि का दान और श्रीमधुसूदन का पूजन – ये भगवान को संतोष प्रदान करने वाले हैं, वैशाख मास में इनका पालन अवश्य करना चाहिए।

 

  • जो व्यक्ति महात्माओं, थके और प्यासे व्यक्तियों को स्नेह के साथ शीतल जल पिलाता है, उसे उतनी ही मात्रा में दस हजार राजसूय यज्ञों का फल प्राप्त होता है।

 

  • वैशाख मास में सब तीर्थ आदि देवता बाहर के जल में भी सदैव स्थित रहते हैं। सब दानों से जो पुण्य होता है और सब तीर्थों में जो फल होता है, उसीको मनुष्य वैशाख में केवल जलदान करके पा लेता है। यह सब दानों से बढ़कर हितकारी है।

 

  • जो वैशाख मास में सड़क पर यात्रियों के लिए प्याऊ लगाता है, वह विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है ।

 

  • इस वैशाख मास में जो किसी जरूरतमंद व्यक्ति को चरण पादुका या जूते-चप्पल दान करता है, वह यमदूतों का तिरस्कार करके भगवान श्री हरि के लोक में जाता है।

 

  • जो वैशाख मास गर्मी के महीने में फल और शर्बत का दान देता है उससे उसके पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते है और दान देने वाले के सारे पाप कट जाते हैं।

 

  • वैशाख मास में जो भक्तिपूर्वक दान, जप, हवन और स्नान आदि शुभ कर्म किये जाते हैं, उनका पुण्य अक्षय तथा सौ करोड़ गुना अधिक होता है ।

 

  • वैशाख मास सुख से साध्य, पापरूपी इंधन को अग्नि की भाँति जलानेवाला, अतिशय पुण्य प्रदान करनेवाला तथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूपी चारों पुरुषार्थों को देनेवाला है।

जय हो महापुण्यदायी माधव मास की, जय हो भगवान श्री नारायण की।। 

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