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क्या शिव मंदिर का पुजारी अगले जन्म में कुत्ते की योनि में जाता है ?
भक्तजनों आइये जानते है की क्या वास्तव मे भूत भावन भगवान शंकर की पूजा करने मनुष्य को या किसी मंदिर के मुख्य पुजारी को कुत्ते की योनि प्राप्त होती है ? क्या भगवान शिव को अर्पित प्रसाद ग्रहण करने से मनुष्य को

अगला जन्म स्वान का जिना पड़ता है ? इसी तर्क के कारण कुछ पुजारी भगवान शिव की आराधना से भयभीत भी रहने लगे है | कुछ अल्पविवेकी जनों का कहना है की भगवान शिव को अर्पित किए हुए भोग को खाने से अगला जन्म कुत्ते का मिलता है | जबकि वह या तो नास्तिक है वे चाहते है की कोई भगवान शिव की पूजा न करे | या तो वह आस्तिक होते हुए अल्पज्ञानी है सायद उन लोगों ने शास्त्र -पुराण को ढंग से पढ़ा नहीं | उन्हे इतना तो अवस्य पता होना चाहिए की भूत भावन भगवान शंकर पापियों को मुक्ति देते है | तो वे अपने भक्तों को कैसे कस्ट दे सकते है ? इसकी सत्यता को आज हम आस्तिकजगत के माध्यम से जानेंगे |
वाल्मीकि रामायण जी में लिखा हुआ है कि एक बार एक ब्राह्मण देवता बड़े तपस्वी थे | बहुत वर्ष पहले वह भिक्षा मांगने गए >उनको भिक्षा में कुछ नहीं मिला तो गुस्सा में निराश होकर आ रहे थे | तो डंडा हाथ में था एक कुत्ता था | और कुत्ता अपने स्वभाव के अनुशार ब्राम्हण पर बिना वजह के भौकने लगा | तो ब्राम्हण ने डंडे से उस कुत्ते की खोपड़ी में दो चार डंडे जमा दिए | कुत्ता मारे कष्ट के रोने लगा | कुत्ते ने भगवान के दरबार में जाकर के कहा प्रभु मेरी क्या गलती थी ? मैं तो स्वान हूं मार्ग में ही तो पड़ा रहूंगा ना | प्रभु मेरी तो प्रवित्ती है चलते हुए मनुष्यों पर भौंकना इन ब्राह्मण देवता ने बिना किसी कारण के मुझे चार-पांच डंडे मारे | देखो मेरी खोपड़ी में कितना घाव लगा है | कुत्ता करुण वेदना से भगवान के सामने रोने लगा | भगवान ने कहा मेरे दरबार में ब्राह्मणों को दंड नहीं दिया जाता किन्तु तुम ही निश्चय करो कि इनको क्या दंड दें ! कुत्ते ने कहा:- प्रभु यहां का जो बहुत श्रेष्ठ कलिंजरपर्वत है उसमें जो आश्रम है | उसका इनको महंत बना दीजिए |
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भगवान बोले:– बोले तुम तो दंड दे रहे हो या वरदान दे रहे हो ? कुत्ता बोल:- प्रभु मैं पूर्व जन्म में महंत ही था | इसीलिए मैं आपको कह रहा हूं कि जब महंत बनेंगे ना और मनमानी आचरण करेंगे और भगवत को अर्पित किए बिना जो भगवान के लिए आता है वो खाएंगे तो कुत्ता बनेंगे | तो हमारे जैसा इनको कोइ मनुष्य मरेगा तो पता चलेगा कि स्वान योनि में कितना कष्ट होता है | इसका सीधा-सीधा अर्थ ये है की भगवान को जो फल ,फूल ,मिष्ठान आदि अर्पित करने के लिए आता है | वो आप शिव मंदिर मे अर्पित ना करके स्वयं खाते है | ( ध्यान दीजिएगा केवल शिव मंदिर की बात नहीं है किसी भी मंदिर मे यदि आप सामग्री अर्पित करने के पूर्व ही खाते है तो आपको निश्चित ही स्वान योनि मे दुख भोगना पड़ेगा ) 2. इससे प्रचलित एक और कहानी सुनने को मिलती है | एक दिन एक विरक्त संत जो गुफा में भजन करते थे | वे भिक्षा मांग के आ रहे थे तो पीछे से आवाज आई बाबा सुन अगर ! मुझे थोड़ा टुकड़ा दे दे तो मेरी प्रेत योन से मुक्ति हो जाए | पीछे मुड़ के देखा तो कोई नहीं दिखाई दिया | एक कुत्ता दिखाई दिया तो उन्हे लगा शायद उनके कान बज रहे होंगे | फिर सीधे चलने लगे थोड़ी देर बाद फिर आवाज आई | बाबा सुनो ना ! फिर मुड़ के देखा और बोल कौन हो तुम ? तब बोले जो मैं कुत्ता रूप दिखाई दे रहा हूं मैं नंदालय का पुजारी हूं | तो संत ने कहा प्रभु आप तो भगवत पार्षद है | आपकी ऐसी कैसी दशा कैसे हो गयी ? तो उन्होंने कहा लाला के लिए अमनिया ( मिठाईया फल आदि ) आता था | मै बिना भोग लगाए उसको प्रयोग किया तो उस के दंड में मै स्वान योनि मे आ गया | अगर आप अपना जूठन मुझे दे देंगे तो अभी मैं मुक्त हो जाऊंगा | तो संत बोले भैया यदि तुम्हें भगवत प्राप्ति हो रही है तो मै दोष से मुक्त तुरंत कर दूंगा | जूठन करके उन्होंने दे दिया और वे तत्पश्चात स्वान योनि से मुक्त हो गए | बात यहां समझने योग्य है शिव मंदिर मे ही नहीं किसी भी मंदिर में आपके पास शिव जी के लिए जो कुछ आया है आप उनको अर्पित कर दिए | इसके बाद जो प्रसाद रूप से आप सेवन करते है तो कभी आपकी दुर्गति नहीं हो सकती | लेकिन मान लीजिए कोई नई वस्तु आई व आप उसे अपने प्रयोग में बिना स्वामी को अर्पित किए करने लगे तो फिर वो अपराध बन जाएगा | अब हम लोग छल-कपट करने लगते हैं सेवक की जगह हम खुद स्वामी बन जाते हैं | उस बात का दंड मिलता है | अन्यथा भगवान की सेवा करने वाले की दुर्गति हो सकती है क्या ? ये बिल्कुल गलत है | 3. शिव पुराणकी आपको कथा सुना रहा हु | एक चोर गया भगवान शिव के मंदिर में चोरी करने | अब वह बेचारे के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं था तो सोच रहा था क्या करूं कैसे करूं तो चोरी करने के लिए भगवान शंकर के मंदिर मे घुस गया उसके पास कोई प्रकाश नहीं था की वह मंदिर में देख सके कि कहां क्या है जिससे वह खाने योग्य कुछ चुरा सके | तो उसने अपने ऊपर के वस्त्र को उतारा और जला कर के प्रकाश किया | और देखा वहा क्या-क्या है | वहां उसको भगवान के जो कुछ आरती पूजा के पात्र , भोग तथा मिठाइयां थे वो उठा ले गया | कुछ समय अंतराल जब उसकी मृत्यु हुई तो भगवान शिव के मंदिर में कुछ मिनट प्रकाश करने के प्रभाव से उसको भगवान शिव के सामने पेश किया गया | यमराज ने भगवान शिव के सामने पेश किया और बोला आपके मंदिर मे केवल कुछ पल के लिए आपको प्रकाश दिया है इतना हीं पुण्य किया है इसने | वह भी पुण्य नहीं है यह पापी आत्मा चोरी के लिए प्रकाश किया था | भगवान शंकर प्रसन्न होकर बोले राजा बना दिया जाए इन्हे | तब उसकी स्मृति जागृत हुई कि एक वस्त्र को जलाने के प्रभाव से मुझे राजा बना दिया गया राजा बनने के उपरांत उसने पूरे नगर में शिवालय बनवाया और उसने आदेश दिया हर शिवालय में अखंड घी का दीपक होना चाहिए | उसके परिणामस्वरूप कुबेर की पदवी में आज भी बैठे हुए है | भगवान शंकर जैसा उदार दाता और उसकी सेवा करने वाला नरक को प्राप्त हो या कुत्ता बने कहा का झूठा ज्ञान है | स्वामी नहीं बनना है स्वामी के लिए जो वस्तु आ गयी है एक बार उनके सामने उनको अर्पित करो और इसके बाद प्रसाद के रूप मे सेवन करो मंगल ही मंगल होगा | ” प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायतेसर्व “ व्यर्थ की कल्पनात्मक बातों में नहीं जाना चाहिए | जो शास्त्र में लिखा उसका कुछ रहस्य होता है | वो बिना भजन के नहीं समझ में आता है शास्त्र तिजोरी होती है | और जहां तिजोरी होती है वहां भूल भुलैया के कई मार्ग रखे जाते हैं ताकि वहां तक असली आदमी पहुंच ना पावे तो शास्त्रों का रास बिना तत्वबोध हुए या बिना भजन किए नहीं समझा जा सकता | बिना गुरु के ज्ञान नहीं होता बोध नहीं होता | इस लिए निःसंकोच भूत भावन भगवान शंकर की पूजा करनी चाहिए | ॐ नमः शिवाय
।।हरि शरणं।।