एकादशी व्रत विधान और माहात्म्य~

एकादशी व्रत कैसे करें?

भगवान श्रीकृष्ण जी ने युधिष्ठिर जी से कहा – कुन्तीनन्दन, दशमी की रात व्यतीत होनेपर एकादशी को प्रातःकाल व्रत करनेवाला पुरुष व्रत का नियम ग्रहण करे और सबेरे तथा मध्याह्न को पवित्रता के लिये स्नान करे। कुएँ का स्नान निम्न श्रेणी का है। बावली में स्नान करना मध्यम, पोखरे में उत्तम तथा नदी में उससे भी उत्तम माना गया है। जहाँ जल में खड़ा होने पर जल-जन्तुओं को पीड़ा होती हो, वहाँ स्नान करने पर पाप और पुण्य बराबर होता है। यदि जल को छानकर शुद्ध कर ले तो घर पर भी स्नान करना उत्तम माना गया है। इसलिये पाण्डव श्रेष्ठ ! घर पर उक्त विधि से स्नान करे। व्रती पुरुष को चाहिये कि वह एकचित्त और दृढ़- सङ्कल्प होकर क्रोध तथा लोभ का परित्याग करे। अन्त्यज, पाखण्डी, मिथ्यावादी, ब्राह्मणनिन्दक, अगम्या स्त्रीके साथ गमन करनेवाले अन्यान्य दुराचारी, परधनहारी तथा परस्त्रीगामी मनुष्यों से वार्तालाप न करे। भगवान केशव की पूजा करके उन्हें नैवेद्य भोग लगाये। घरमें भक्तियुक्त मनसे दीपक जलाकर रखे। पार्थ! उस दिन निद्रा और मैथुन का परित्याग करे। धर्मशास्त्र से मनोरञ्जन करते हुए सम्पूर्ण दिन व्यतीत करे। नृपश्रेष्ठ ! भक्तियुक्त होकर रात्रि में जागरण करे, ब्राह्मणोंको दक्षिणा दे और प्रणाम करके उनसे त्रुटियोंके लिये क्षमा मांगे। जैसी कृष्णपक्षकी एकादशी है, वैसी ही शुक्लपक्षकी भी है। इसी विधिसे उसका भी व्रत करना चाहिये। पार्थ ! द्विजको उचित है कि वह शुक्ल और कृष्णपक्ष की एकादशी के व्रती लोगों में भेदबुद्धि न उत्पन्न करे।

एकादशी व्रत की क्या महिमा है?

शंखोद्धार तीर्थ में स्नान करके भगवान् गदाधर का दर्शन करने से जो पुण्य होता है तथा संक्रान्ति के अवसर पर चार लाख का दान देकर जो पुण्य प्राप्त किया जाता है, वह सब ‘एकादशी- व्रत की सोलहवीं कला के बराबर भी नहीं है। प्रभासक्षेत्र में चन्द्रमा और सूर्य के ग्रहणके अवसर पर स्नान दान से जो पुण्य होता है, वह निश्चय ही एकादशी को उपवास करनेवाले मनुष्य को मिल जाता है। केदारक्षेत्र में जल पीनेसे पुनर्जन्म नहीं होता, एकादशी का भी ऐसा ही माहात्म्य है। यह भी गर्भवासका निवारण करनेवाली है। पृथ्वीपर अश्वमेध यज्ञका जो फल होता है, उससे सौगुना अधिक फल एकादशी व्रत करनेवालेको मिलता है। जिसके घरमें तपस्वी एवं श्रेष्ठ ब्राह्मण भोजन करते हैं उसको जिस फल‌की प्राप्ति होती है, वह एकादशी व्रत करनेवाले को भी अवश्य मिलता है। वेदाङ्गों के पारगामी विद्वान् ब्राह्मणको सहस्र गोदान करनेसे जो पुण्य होता है, उससे सौगुना पुण्य एकादशी व्रत करनेवाले को प्राप्त होता है। इस प्रकार व्रती को वह पुण्य प्राप्त होता है, जो देवताओं के लिये भी दुर्लभ है। रातको भोजन कर लेनेपर उससे आधा पुण्य प्राप्त होता है तथा दिनमें एक बार भोजन करने से देह- धारियोंको नक्त-भोजन का आधा फल मिलता है।. जीव जबतक भगवान् विष्णु जी के प्रिय दिवस एकादशी को उपवास नहीं करता, तभीतक तीर्थ, दान और नियम अपने महत्त्वकी गर्जना करते हैं। इसलिये पाण्डवश्रेष्ठ ! तुम इस व्रतका अनुष्ठान करो । कुन्तीनन्दन ! यह गोपनीय एवं उत्तम व्रत है, जिसका मैंने तुमसे वर्णन किया है। हजारों यज्ञों का अनुष्ठान भी एकादशी व्रत की तुलना नहीं कर सकता। दोनों पक्षोंकी एकादशी समान रूपसे कल्याण करनेवाली है। इसमें शुक्ल और कृष्णका भेद नहीं करना चाहिये।

दो दिन एकादशी पड़ने पर किस दिन व्रत करें?

यदि सूर्य के उदयकाल में थोड़ी-सी एकादशी, मध्यमें पूरी द्वादशी और अन्तमें किञ्चित् त्रयोदशी हो तो वह ‘त्रिस्पृशा’ एकादशी कहलाती है। वह भगवान्‌को बहुत ही प्रिय है। यदि एक त्रिस्पृशा एकादशीको उपवास कर लिया जाय तो एक हजार एकादशी व्रतोंका फल प्राप्त होता है तथा इसी प्रकार द्वादशीमें पारण करनेपर सहस्रगुना फल माना गया है। अष्टमी, एकादशी, षष्ठी, तृतीया और चतुर्दशी – ये यदि पूर्व तिथिसे विद्ध हों तो उनमें व्रत नहीं करना चाहिये। परवर्तिनी तिथिसे युक्त होनेपर ही इनमें उपवास का विधान है। पहले दिन दिन में और रात में भी एकादशी हो तथा दूसरे दिन केवल प्रातःकाल एक दण्ड एकादशी रहे तो पहली तिथि का परित्याग करके दूसरे दिन की द्वादशीयुक्त एकादशीको ही उपवास करना चाहिये। यह विधि मैंने दोनों पक्षोंकी एकादशीके लिये बतायी है। जो मनुष्य एकादशीको उपवास करता है, वह वैकुण्ठधाममें, जहाँ साक्षात् भगवान् गरुडध्वज विराजमान हैं, जाता है। जो मानव हर समय एकादशी के माहात्म्यका पाठ करता है, उसे सहस्र गोदानोंके पुण्यका फल प्राप्त होता है। जो दिन या रातमें भक्ति- पूर्वक इस माहात्म्यका श्रवण करते हैं, वे निस्सन्देह ब्रह्महत्या आदि पापोंसे मुक्त हो जाते हैं। एकादशीके समान पापनाशक व्रत दूसरा कोई नहीं है।

।।हरि शरणं।।

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