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माता नर्मदा प्राकट्य कथा
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष माघ महीने के शुक्ल पक्ष सप्तमी को नर्मदा जयंती मनाई जाती है | नर्मदा नदी हिन्दू नदियों के 7 पावन नदियों मे से एक है | कहा जाता है कि मध्य प्रदेश में स्थित अमरकंटक नर्मदा नदी का उद्गम स्थल है | जहां नर्मदा जयंती सबसे अधिक उत्साह से मनाई जाती है | ऐसा माना जाता है कि नर्मदा जी माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अस्तित्व में आई थी | सप्तमी को सूर्य भगवान का दिन भी माना जाता है ऐसा माना जाता है | श्रद्धालु नर्मदा नदी की पूजा करते हैं उनके जीवन में सुख शांति और समृद्धि बनी रहती है | हमारे पुराणों में इसके महत्व से जुड़ी कई कथाएं मौजूद हैं। जो हम आपको सुनते है | वामन पुराण की के अनुसार भगवान शिव शांति की खोज में मंदार पर्वत पर आये थे। तभी माता पार्वती को एक मजाक सूझा. अचानक पार्वती जी ने आकर भगवान शिव की आंखें बंद कर दीं। आदिशक्ति भगवती ने स्वयं महादेव की आंखें बंद कर दीं, जिससे संसार में अंधकार छा गया। ध्यान में मग्न महादेव का शरीर प्रचंड अग्नि के समान जलने लगा | भगवान विश्वनाथ के तेज से माता पार्वती को पसीना आने लगा । तत्पश्चात पसीने की बूंदों से एक भयानक रूप वाले बालक का जन्म हुआ। और वह पुत्र अत्यंत विकराल था | माँ ने स्वयं विकराल रूप वाले बालक को देखकर भय युक्त हो गयी | भगवान शिव ने कहा यह अँधेरा तुम्हारे स्पर्श से हुआ है, यह हम दोनों के स्पर्श से पैदा हुआ है, इसलिए यह हमारा पुत्र है | क्योंकि यह अँधेरे के कारण पैदा हुआ है इसलिए इसका नाम अंधक पड़ गया | हिरण्यकश्यप का भाई असुर राज हिरण्याक्ष संतान हीन था | हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था प्रह्लाद जिसकी रक्षा स्वयं भगवान विष्णु ने की थी | एक बार असुर राज हिरण्याक्ष ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और उनसे एक बलशाली पुत्र का वरदान मांगा। भगवान शंकर ने अपने पुत्र अंधक को वरदान मे हिरण्याक्ष दे दिया। ( अंधकासुर भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था ) उसने अपने पिता भगवान शिव की आराधना करके उनसे 2000 हाथ, 2000 पैर और 2000 आखे और 1000 सिर वाला भयानक रूप प्राप्त किया। लेकिन जैसे हिरण्याक्ष की शक्ति बढ़ती गई, उसके अत्याचार भी बढ़ते गए | फिर धरती की संतुलन के लिए भगवान विष्णु ने वराह अवतार धरण करके हिरण्याक्ष का वध किया | पिता की मृत्यु की खबर सुन के अंधकासुर के मन मे बदले की भावना जल उठीं | अंधकासुर भगवान विष्णु तथा भगवान शिव को अपना शत्रु मानने लगा | अंधकासुर ने भगवान शंकर के वरदान के बल से देवलोक पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया | अंधकासुर ने अपने पराक्रम और साहस से देवताओं को परास्त कर दिया। कहा जाता है कि राहु और केतु के बाद अंधकासुर ही एकमात्र ऐसा असुर था जिसने अमृत पान किया था | देवताओं पर प्रभुत्व प्राप्त करने के बाद अंधकासुर ने कैलाश की ओर अपना आधिपत्य करने के लिए तत्तपर हुआ | कैलाश में अंधकासुर और महादेव के बीच भयंकर युद्ध हुआ | जिसमें शिव भगवान ने अंधकासुर का वध कर किया। तत्पश्चात सभी देवता ब्रम्हा और विष्णु समेत भगवान शिव के पास जो मैकल पर्वत पर छिप कर बैठे थे | मैकलपर्वत अमरकंटक जो की इस समय मध्य प्रदेश में स्थित है | कई प्रस्तुतियां पूजा-अर्चना देवताओ के द्वारा करने के बाद भोलेनाथ ने अपनी आंखें खोलीं, तब सभी देवताओं ने प्रार्थना की, हे प्रभु, अनेकों प्रकार के असुरों का वध कर के हमारी आत्मा पापी हो चुकीं है | हम इससे कैसे छुटकारा पा सकते हैं, कैसे हमें पुण्य की प्राप्ति होगी | उसके बाद भगवान शिव के सिर से पसीने की एक बूंद धरती पर गिरी और कुछ ही क्षण में वह बंद तेजोमयी कन्या के रूप मे परिवर्तित हो गयी | उस कन्या का नाम नर्मदा रखा गया | उस कन्या को अनेक वरदान प्राप्त हुए। भगवान शिव ने देवी नर्मदा को माघ मास की शुक्ल सप्तमी को नदी के रूप में उन लोगों के पापों को दूर करने करने के लिए धरती पे अवतरित किया । देवी नर्मदा के अवतरण की इसी तिथि को नर्मदा जयंती मनाई जाती है। भगवान शिव का आदेश पाकर नर्मदा ने भगवान से प्रार्थना की कि वह कैसे लोगों के पापों को दूर कर सकती हैं, तब भगवान विष्णु ने नर्मदा को आशीर्वाद दिया और कहा कि हे नर्मदा ! तुम संसार के सभी पापों को दूर करने की क्षमता रखोगी | और तुम्हारे जल से भोलेनाथ का अभिषके किया जाएगा | भगवान शिव ओंकारेश्वर के रूप में सदैव तुम्हारे तट पर निवास करेंगे। उनकी कृपा दृष्टि आप पर सदैव बनी रहेगी। जिस तरह स्वर्ग से अवतरित होकर गंगा प्रसिद्ध हुई थी , उसी तरह आप भी जानी जाएंगी | नर्मदा नदी के तट पर जहां भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर स्थित है। – दूर-दूर से श्रद्धालु यहां भगवान भोलेनाथ और मां नर्मदा के दर्शन के लिए आते हैं। नर्मदा सिर्फ एक नदी नहीं है, इसे मां की तरह पूजा जाता है। इस नदी का धार्मिक महत्व ब्रह्म पुराण में सिद्धक्षेत्र के रूप में भी वर्णित है। इसके जल से स्नान करने से पाप दूर करने वाला माना जाता है। ये लोग कई जन्मों के पापों से मुक्त हो जाते हैं। वे अपने पितरों के लिए पिंडदान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति नर्मदा जयंती के दिन मां नर्मदा की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मां नर्मदा की पूजा करने के साथ-साथ इसमें स्नान करने से बीमारियां भी दूर होती हैं।
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श्री नर्मदा चालीसा :
॥ दोहा॥
देवि पूजित, नर्मदा,महिमा बड़ी अपार ।
चालीसा वर्णन करत,कवि अरु भक्त उदार ॥
इनकी सेवा से सदा,मिटते पाप महान ।
तट पर कर जप दान नर,पाते हैं नित ज्ञान ॥
॥ चौपाई ॥
जय-जय-जय नर्मदा भवानी,तुम्हरी महिमा सब जग जानी ।
अमरकण्ठ से निकली माता,सर्व सिद्धि नव निधि की दाता ।
कन्या रूप सकल गुण खानी,जब प्रकटीं नर्मदा भवानी ।
सप्तमी सुर्य मकर रविवारा,अश्वनि माघ मास अवतारा ॥4
वाहन मकर आपको साजैं,कमल पुष्प पर आप विराजैं ।
ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैं,तब ही मनवांछित फल पावैं ।
दर्शन करत पाप कटि जाते,कोटि भक्त गण नित्य नहाते ।
जो नर तुमको नित ही ध्यावै,वह नर रुद्र लोक को जावैं ॥8
मगरमच्छा तुम में सुख पावैं,अंतिम समय परमपद पावैं ।
मस्तक मुकुट सदा ही साजैं,पांव पैंजनी नित ही राजैं ।
कल-कल ध्वनि करती हो माता,पाप ताप हरती हो माता ।
पूरब से पश्चिम की ओरा,बहतीं माता नाचत मोरा ॥12
शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैं,सूत आदि तुम्हरौं यश गावैं ।
शिव गणेश भी तेरे गुण गवैं,सकल देव गण तुमको ध्यावैं ।
कोटि तीर्थ नर्मदा किनारे,ये सब कहलाते दु:ख हारे ।
मनोकमना पूरण करती,सर्व दु:ख माँ नित ही हरतीं ॥16
कनखल में गंगा की महिमा,कुरुक्षेत्र में सरस्वती महिमा ।
पर नर्मदा ग्राम जंगल में,नित रहती माता मंगल में ।
एक बार कर के स्नाना,तरत पिढ़ी है नर नारा ।
मेकल कन्या तुम ही रेवा,तुम्हरी भजन करें नित देवा ॥20
जटा शंकरी नाम तुम्हारा,तुमने कोटि जनों को है तारा ।
समोद्भवा नर्मदा तुम हो,पाप मोचनी रेवा तुम हो ।
तुम्हरी महिमा कहि नहीं जाई,करत न बनती मातु बड़ाई ।
जल प्रताप तुममें अति माता,जो रमणीय तथा सुख दाता ॥24
चाल सर्पिणी सम है तुम्हारी,महिमा अति अपार है तुम्हारी ।
तुम में पड़ी अस्थि भी भारी,छुवत पाषाण होत वर वारि ।
यमुना मे जो मनुज नहाता,सात दिनों में वह फल पाता ।
सरस्वती तीन दीनों में देती,गंगा तुरत बाद हीं देती ॥28
पर रेवा का दर्शन करकेमानव फल पाता मन भर के ।
तुम्हरी महिमा है अति भारी,जिसको गाते हैं नर-नारी ।
जो नर तुम में नित्य नहाता,रुद्र लोक मे पूजा जाता ।
जड़ी बूटियां तट पर राजें,मोहक दृश्य सदा हीं साजें ॥32
वायु सुगंधित चलती तीरा,जो हरती नर तन की पीरा ।
घाट-घाट की महिमा भारी,कवि भी गा नहिं सकते सारी ।
नहिं जानूँ मैं तुम्हरी पूजा,और सहारा नहीं मम दूजा ।
हो प्रसन्न ऊपर मम माता,तुम ही मातु मोक्ष की दाता ॥35
जो मानव यह नित है पढ़ता,उसका मान सदा ही बढ़ता ।
जो शत बार इसे है गाता,वह विद्या धन दौलत पाता ।
अगणित बार पढ़ै जो कोई,पूरण मनोकामना होई ।
सबके उर में बसत नर्मदा,यहां वहां सर्वत्र नर्मदा ॥40
॥ दोहा ॥
भक्ति भाव उर आनि के,जो करता है जाप ।
माता जी की कृपा से,दूर होत संताप॥
॥ इति श्री नर्मदा चालीसा ॥
।।हरि शरणं।।